क्या क्या हमने खोया होता, जो हम कभी ना मिलते,
यादों के जो फूल खिले हैं, वो फिर कभी न खिलते.
कितनी खुशियाँ बांटी हमने, दुःख भी साथ सहे हैं,
कितने तनहा रह जाते, जो तुम न हमको मिलते.
जितना जाना,जितना समझा, वो क्या कम था वरना,
तुम्हें समझ पाने की हसरत, दिल में ले कर मरते.
वो तो किस्मत अच्छी थी, जो तुमसे मित्र मिले हैं,
वरना तुमसे दोस्त, बड़ी किस्मत वालों को हैं मिलते.
amazing!
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Thanks.
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very good
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अलफ़ाज़ का बहुत ही सुन्दर गठजोड़
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Thanks for such a nice comment.
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वाह क्या बात है। कितने तनहा रह जाते जो हम न मिलते।
इन पंक्तियों से ही दोस्ती का सार स्पष्ट हो जाता है।
बहुत बहुत साधुवाद। उम्दा विचार
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Thanks a lot.
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