मैं बैठी बीती यादें लेकर
समय उड़ गया पंख पसार
मैं ही पीछे रह गयी
आगे बढ़ गया सब संसार
समय सिखा देगा सब कुछ
इसी भरम में समय गंवाया
आँख कान सब बंद पड़े थे
समय तो था हरदम तैयार
आगे कल और पीछे कल की
बड़ी है भूल भुलैय्या
जो इसमें फँस गया न उबरे
वर्तमान को ही दे बिसार
समय हँसे
जो समय न चेते
उसका जीना है बेकार
भूल भुलैय्या
सावन
सावन तो सावन है
बचपन का हो या
बुढ़ापे का
क्यों है शिकवा
ज़माने से
कागज़ भी है
पानी भी है
कौन रोकता है तुम्हे
कश्ती तैराने से
मन तो कभी बूढ़ा
नहीं होता
कौन रोकता है
बच्चों की ख़ुशी में
खुश हो जाने से
छत से झांक कर
मौज करते बच्चों को देखो
कौन रोकता है
बारिश का लुत्फ़
उठाने से
~indira
Pahchan/पहचान/IDENTITY
भाग्य की विडंबना
भाग्य की विडंबना
चुप हो तू बस देखना
हो भला या हो बुरा
निहार बस ना टोकना
कौन किसको मारता
कौन किसको पूजता
तेरा क्या है आता जाता
चुप हो तू बस देखना
भाग्य की विडंबना
तू समय है मूक बधिर
अन्याय अपराध हो
रोक तू सकता नहीं
निहार बस ना टोकना
भाग्य की विडंबना
साक्ष्य दे सकता नहीं
तू समय है मूक बधिर
पैरों तले रौंदता
बलवान कमजोर को
धन के बल पर अपराधी
सब के सर पर नाचता
तेरा क्या है आता जाता
निहार बस ना टोकना
तू समय है मूक बधिर
चुप हो तू बस देखना
भूखे लाल सो गए
भूखी माँ के अंचल तले
देख ना पसीजे
राक्षस अट्हास करे
तू बधिर तेरे कानों को
रुदन नहीं बींधता
टुकुर टुकुर ताक मत
बोल तू सकता नही
दो बूँद आंसू की
तुझसे क्या अपेक्षा
भाग्य की विडंबना
हो भला या हो बुरा
तू समय है मूक बधिर
चुप हो तू बस देखना
मन कभी बूढ़ा नहीं होता
मन कभी बूढ़ा नहीं होता तन बूढ़ा होता है , मन तो हमेशा यही कहता है-
चुराके तितलियों से रंग,फूलों से गंध
नाचूं बगिया में भंवरों के संग|
चुराके बादलों से नमी, हवा से मस्ती,
नाचूं सागर पे लहरों के संग|
चुराके चाँद से चांदनी ,रात से अँधेरा,
नाचूं नभ में तारों के संग|
चुराके कोयल से मिठास,
रचके खुशियों के गीत,
छेड़ूं मीठी मीठी तान सबके संग|
शब्दों का सियापा
मिर्च मसाला भर भर के खबर बनादी तीखी
भरदी इतनी आग के अखबार जल गए
जल गए अख़बार लोगों ने खोया अपना आपा
दीन धरम भूल के दंगों में भिड़ गए
भिड़ गए दंगों में घर बार जलाये जनता की संपत्ति सब स्वाहा कर गए
कर गए स्वाहा सम्पत्ति पैरों मारी कुल्हाड़ी
धरम गुरु और नेता मिल जनता लूट गए
लूट गए को जनता को खेल अजब शब्दों का खेल
सच्ची ख़बरें देते जो उनको पहुंचाएं जेल
लल्लो चप्पो करने वाले मलाई पेल गए
पेल गए मलाई जख्मों पर रखी न थोड़ी मलहम
थोथे सपन दिखा जनता को लोभी लूट गए
गए लूट लोभी देखो शब्दों की महिमा न्यारी
सयाने सयाने बच गए बाकी सब जल गए
पुल
तुम्हारी मेरी सोच नहीं मिलती
तकरार बढ़ते जाते हैं
जो ना समय से रोका तो
मनमुटाव जरूरत से ज्यादा बढ़ जाते है
फासले बढ़ते जाते हैं
मौन को मत गहराने दो
संवाद बने रहने दो
बातों से भी तो मसले हल किये जा सकते है
अहम् की दीवार बीच में ना आने दो
रिश्ते मत तोड़ो
रिश्तों में दरार ना आने दो
अहम् को इतना भी ना खींचो कि
पुल बनाने की जगह न बचे
मिलें तो एक दुसरे को देख मुंह फेर ले
राष्ट्रकवि दिनकर: 111वाँ जन्मदिवस
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की स्मृति को उनके 111वें जन्मदिवस पर भावपूर्ण पुष्पांजलि! -https://rkkblog1951.wordpress.com
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की स्मृति को उनके 111वें जन्मदिवस पर भावपूर्ण पुष्पांजलि!
सलाह
प्यार है तो जताया भी करो
दर्द है तो बताया भी करो
रूठे हुओं को मनाया भी करो
जज़्बात छिपाये तो
टीस उठेगी
छिपाने की जगह दिखाया भी करो
ज्यादा दिन दूर रहने से
दूरियां बढ़ जाती हैं
कभी कभी दोस्तों से मिल आया भी करो
ज़िन्दगी और मौत
मौत ने पूछा
ज़िंदगी एक छलावा है
एक झूट है
हर दिन हर पल तुम्हारा साथ छोड़ती जाती है
फिर भी तुम उसे प्यार करते हो
मैं एक सच्चाई हूँ अंत तक तुम्हारा साथ निभाती हूँ
पर फिर भी तुम मुझसे नफरत करते हो
मुझसे डरते हो
मुझसे समझौता कर लो
फिर कोई डर तुम्हें डरा न पायेगा
मैंने कहा
तुम सत्य हो शाश्वत हो
अनिवार्य हो
पर तुमसे कैसे समझौता करलूं
तुम्हारी टाइमिंग बहुत गलत होती है
तुम गलत समय पर गलत लोगों को ले जाती हो
तुम गलत समय पर गलत तरीके से आती हो
पूछो उन बदनसीब अभिवावकों से
जिन्होंने खोए अपने लाल असमय
पूछो उन से ,
जिन्होंने ने गवाए अपने परिजन
आतंकवादियों के हाथों
उम्र ना थी की
जान गवाने की
जो मजबूर पीड़ित , बीमार
मरने की प्रार्थना करते हैं
उन्हें तुम तड़पने को छोड़ देती हो
बच्चों ,जवानों को अपना शिकार बनाती हो
कैसे करलूं तुमसे समझौता
तुम कड़वा सच हो, अनिवार्य हो पर
न्यायसंगत नहीं
काम से काम मेरी नज़र में तो नहीं
ज़िन्दगी लाख छलावा सही
मीठा झूठ सही
पर सुन्दर है जीने का,
लड़ने का हौसला देती है
इंदिरा